Sunday, 3 January 2021

ठहर-ठहर कहर है जिंदगी




 ठहर-ठहर कहर है जिंदगी

मानो उजड़ता हुआ शहर है जिंदगी


सांसों की कैद में है रूह की आज़ादी

थकती आहों की नज़र है जिंदगी


यकीन, डर और ख्वाब की रुबाई जिंदगी

मोहब्बत में सियासत का ज़हर है जिंदगी


मुफलिसी, फकीरी, गुरबत है जिंदगी

बूढ़ी आंखों में तार की खबर है जिंदगी


जिंदगी में जिंदगी, बची कितनी जिंदगी

जली बस्ती, सूना घर, बस खंडहर है जिंदगी

                - आयुष सूर्यवंशी


Photo by Lukas from Pexels

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