AYUSH SURYAVANSHI
Monday, 2 January 2017
अंजान सफर में एक तारा टुटा
अंजान सफर में एक तारा टुटा
अंजान सफर में एक तारा टुटा
लगता है कहीं मेरा शहर है छुटा
टूट कर गिरा बिख़र गया
मेरे पहलु में आके बिफ़र गया
हाथों में है अभी मेरे
लगता कुछ निखर गया
रो रहा है कब से इतना मायूस क्यों है
पता नहीं इसमें इतना ''आयुष'' क्यों है?
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