
वो पतलें होठों वाली लड़की मुझे खींच के पान की दुकान की तरफ ले गई...जब आप राजीव चौक के गेट नम्बर 6 से बाहर को निकलेंगे...रोड क्रॉस करते ही एक पान और सिग्रेट की बड़ी दुकान मिलेगी...थोड़ा सा अजीब सा लगा मुझें... क्योंकि इस खूबसूरत आंखों वाली लड़की को नशे से नफरत थी और मैं भी नशा करता नहीं था....शायद कभी कभी कर लेता इनकी खूबसूरतत आंखो का नशा ...जो अक्सर रात को सोने से पहले चढ़ जाता और मदहोश कर नींद छीन लेता...खैर हम दुकान में गए... काफी भीड़ थी दुकान में...जो रात के समय अक्सर होती है...चेहरे पर मुस्कराहट लिए आंखो से कुछ..... और जुबान से कहा कि मीठा पान खानें का मन है... जब तक वो दुकानवाला पान लगा रहा था तब तक वो उस पान को ही देख रही थीं मानो कोई इतने ध्यान से मूर्तिकार को नक्काशी करते हुए देख रहा हो और मैं उन्हें देख रहा था ...उनकी खूबसूरत आंखे ...और कभी कभी नजरे चुरा के उनके पतलें गुलाबी होंठ भी देख लेता...एक खूबरसत नक्काशी के नजीर को...खैर पान लग के सामने आया...मोहतरमा ने ही पहले उठाया...और लगा लिया जुबां से...गुलाबी होंठों का रंग अब लाल हो रहा था...पान की मिठास आंखो में साफ झलक रही थी...अभी मैं ये देख ही रहा था कि उनके गुलाब सरीके पतलें होठों से एक नन्ही सी लाल बूंद सरकी...और वो लम्हा ऐसा था मानो किसी ने दुल्हन का घूंघट उठा कर मांग में सिंदूर रख दिया हो...मैं ये पल आंखों में समा लेना चाहता था...मगर... मैंनें उस बूंद को उनके होठों के बगल से अपनी ऊंगली से हलके से पोंछ दिया...हलका सा चौंकी वो....अगर मैं नहीं करता तो मुझसे पहले वही कर देतीं....चौकना लाजमी था...हम सिर्फ दो दोस्त थे...मगर शायद पान के स्वाद से ज्यादा मेरी उंगली का एहसास नहीं था...अभी तक मैनें पान उठाया भी नहीं था...दिल तो यही कह रहा था कि अपना पान भी उन्हें ही खिला दूं और फिर से यही कहानी दोहराती हुई देखूं....
आयुष सूर्यवंशी
आयुष सूर्यवंशी
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