Sunday, 16 March 2025

संजीवनी

रात के अँधेरे में भी आसमान में वो लाल धुआं...काली रात को चीरते हुए मानों सीधे चांद छूने की कोशिश कर रहा हो...हवा में ऐसी गंध जो साक्षात् यमराज के होने का प्रमाण दे रही हो...बाईं तरफ जहां तक नजर जाए वहां तक अथाह समुद्र... लहरों पर चांद की परछाईं और दूसरी तरफ दाईं ओर थोड़ी ऊंचाईं पर...बड़े बड़े दो दरवाजे के पीछे वो सोने सा चमकता शहर...चांद का अक्श और उस शहर की परछाई...मानों इस भीड़ से दूर लहरों पर सवार होकर दोनों छिप के मिलना चाह रहे हों...

मगर इन लहरों और उस शहर के बीच है वो लाखों की भीड़...जो सन्न है...ऐसा सन्नाटा जहां सिर्फ लहरों का शोर है...या जहां चिताओं की जलती लौ की चिडचिड़ाहट भी चीख रही है...

भीड़ के बीचों बीच वो शख्स बैठा है...एक बड़े पत्थर के सहारे...लहरों से इतना नजदीक की...कि जब लहरें किनारे पत्थरों से टकरा रही हैं...तो समुद्र के खारे पानी के छींटे सीधें उसकी आंखों में जा रही हैं...समुद्र को एक बाण से सुखा देने का दम रखने वाले राम भी अपनी आंखों से आंसू छलकने से रोक नहीं पा रहे हैं...रोए जा रहे हैं...अपनी गोद में निर्जीव से पड़े लक्ष्मण को निहारते हुए...लक्ष्मण की जटाओं में रेत के जो कण लगें हैं उनको राम हटाते हैं

जो लक्ष्मण हर कदम पर राम का सहारा थे...आज वो राम के सहारे राम की गोद में लेटे हैं...और राम...पत्थरों के सहारे बैठे हुए...पूरी की पूरी रात जाग कर पहरा देने वाले लक्ष्मण वनवास में जब पहली बार इस तरह सोये भी तो राम सहम गए...मानों जग के पालनहार भी असहाय हों...इतने असहाय की न खुद कुछ कह रहे न राजीवनयन...

गोल घेरा बना के पूरी की पूरी सेना बैठी है...लेकिन कोई कुछ न समझ पा रहा...न कोई कुछ कह पा रहा...धरा के दो सबसे बड़े योद्धाओं की ये गति देखकर न सुग्रीव समझ पा रहे...न जामवंत से कुछ कहा जा रहा...सब शांत...


राम जरा ठिठके...इतने सारे ख्याल जहन में उमड़ पड़े...मानों लक्ष्मण संग बिताया हर लम्हा एक पल में घूम गया हो...याद आया कैसे महाराज दशरथ ने जब वनवास वाली बात कही तो लक्ष्मण राम के लिए महाराज से ही भिड़ गए...राम से यहां तक कह दिया कि वनवास जाने की कोई जरूरत ही नहीं है...आप युवराज हैं और सप्त सिंधू के सिंहासन पर आपका ही अधिकार है...छोटे भाई के शेषनाग से गुस्से को भी राम ने कैसे मुस्करा कर शांत कराया था...उन्हें याद आया...


विदेह की सभा में दुनिया के वीरों में जब कोई कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया था...तब भी लक्ष्मण खुद परशुराम से वाद-विवाद करने लगे थे...


याद आया कि कैसे पूरे वनवास राम का एक पैर सीता और एक पैर लक्ष्मण दबाते थे...और जब केवट ने नांव चढ़ाने से पहले दोनों पैर धोने की शर्त रख दी...तो लक्ष्मण ने उसे मारने के लिए धनुष उठा लिया था...हालांकि कई बार उनके लखन ने बहुत ही संयम स्वभाव भी दिखाया था...निषादराज की जब घास फूस की कुटिया में राम को सोना पड़ा...तो निषादराज  की आंखों में आंसू थे कि रघुकुलनंदन कंद मूल खा कर वनवास में घास पर सो रहे हैं...तब लक्ष्मण ने ही निषादराज को मानव जीवन के संघर्षों और कर्म के बारे में समझाया था...अर्धनिद्रा में लीन राम को तब छोटे भाई की ये बातें सुन कर बड़ा संतोष मिला था...


भाई ने कभी साथ नहीं छोड़ा...राम इतने संघर्षों में कभी अकेले नहीं रहे...जब हनुमान से भेंट नहीं हुई थी...तब भी लक्ष्मण साथ थे...वैदेही हरण के बाद भी लक्ष्मण थे...वनवास राम को हुआ था...जिद कर लक्ष्मण भी साथ आए...राम याद करने की कोशिश कर रहे हैं कि कोई तो ऐसी मुश्किल घड़ी तो रही होगी जब लक्ष्मण साथ न रहे हों...दुनिया के हर सवाल का जो खुद जवाब हैं...ऐसे राम को भी इसका उत्तर नहीं मिल रहा है...पर कई और सवाल आ गए...मां कौशल्या ने जरूर कहा था कि सीता और लक्ष्मण का ख्याल रखना...पर उर्मिल और मां सुमित्रा को तो राम पे इतना यकीन था कि उन दोनों ने तो कुछ कहा ही नहीं...महल जा कर क्या जवाब दूंगा... अयोध्या की चौहद्दी में बिन लक्ष्मण कदम भी कैसे रखूंगा...अब बिन लक्ष्मण जनकनंदनी को खोज भी पाऊंगा मैं...सीता मिलीं तो क्या कहूंगा कि लक्ष्मण...हारता हुआ इंसान जैसे अपनी हर बीती कहानी में काश और शायद ढ़ूढ़ने लगता है...राम भी वहीं कर रहे हैं कि शायद वनवास आता ही न....काश लक्ष्मण की ही बात मान ली होती...और पता नहीं क्या क्या राम सोचे जा रहे हैं...

अचानक मानों राम को कुछ याद आता है....आसमान में कुछ खोजने लगते हैं...पहले सामने की तरफ और फिर हल्का सा उतना मुड़ कर की गोद में सो रहे लक्ष्मण को कोई परेशानी ना हो..आसमान में पीछे देखने लगते हैं...चांद दूसरे हिस्से की तरफ बढ़ रहा था...आंसू बह रही आंखों को राम बंद करते हैं कि आंखे फिर डबडबाने लगती हैं...इसी स्थिति में सूर्यवंश के सूर्य...चंद्रमा से विनती करते हैं...कि अभी अस्त मत होना...


और फिर तभी अचानक हनुमान नजर आते हैं...मानों सारे बादल छट कर फिर उजाला हो गया

संजीवनी लक्ष्मण को नहीं राम को मिली थी...


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