सोचा था मैंनें की आपके जाने के बाद घर जाऊँगा आपके, पर गेट पे पहुँच के कहूँगा क्या मैं? हर बार यही कहता था की आँटी, रोहित सर है क्या? बुला दीजिए उन्हें, बोलिएगा आयुष आया है। पर क्या इस बार भी ये कहने पे आप उन्हीं दरवाजों के पीछे से निकलेंगे, हर बार की तरह?
हमेशा कहा करते थे न आप की मम्मी-पापा का सोचता हूँ, उनका सहारा मैं ही हूँ, सोचा नहीं आपने उस रात मम्मी-पापा के बारे में? यक़ीन करीएगा सर, मै आँटी का चेहरा देख ही नहीं पाउंगा, पता नहीं सुधीर ने कैसे देखा होगा, जब आप हॉस्पिटल में थे।
ये सब छोड़िए, आंटी पर क्या बीत रही होगी आपके जाने के बाद, कहा करते थे न आप, कि शहर से बाहर इसलिए नहीं निकलते, की पापा की तबियत सही नहीं रहती, एक बार तो सोचते उनकी ज़िंदगी से बाहर जाने से पहले। सर मैने आप से फ़िजिक्स तो ज्यादा नहीं सीखा उन दो सालों में, पर ज़िंदगी से लड़ना बहुत अच्छे से सीख गया, मुझे सीखा कर, आप भूल क्यूँ गए ये लड़ना?
अपने स्टूडेंट्स की परेशानियों को अपनी परेशानी समझने वाले आप इतनी सी बात पे.....एक दिन पहले ही तो बात हुई थी आपसे, कह नहीं सकते थे आप एक बार भी। सब कहते है न, ज़िंदगी में लोग आते-जाते रहते हैं पर ये क्यूँ नहीं कहता कोई की जाने वाले यादें और आँसू भी दे जातें हैं?
अब कभी फिर मत कहिएगा कि हिम्मत मत हारो आयुष या एक बार फिर कहने आ जाइए ना सर प्लीज़......
LETTER TO ROHIT SIR
Friday, 12 May 2017
क्यों???
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