सियासत से इश्क हो ये अच्छी
बात है, मगर इश्क
में सियासत नहीं होनी चाहिए।

सरकारी आंकड़ो की माने तो बंटवारे में 10 लाख से भी ज्यादा लोगो की
हत्या हुई औऱ 83,000 से
ज्यादा औरतो की अस्मत लूटी गई,
वों भी बस इस बात पे कि हमारे मज़हब एक न थे, लोगों ने अपने ही घर की
बेटियों, औरतों को
मार दिया कि कहीं उनकी इज़्ज़त पे आँच ना आ जाए..... और इतने सालों में काफ़ी कुछ
बदल गया मगर मज़हब के नाम पे नफ़रत आज भी वैसे ही है.........
मज़हब कैसे हैं ये, जिसके नाम पे लाखों को काट दिया था ?
अमृतसर का वो स्कूल कैसा, जहाँ इंसान शर्मसार हुआ था,
देखूं मैं भी वो शमशीरें, जिससे हिंदुस्तान पे वार हुआ था। ( शमशीरे=तलवारें)
क़ौम की लड़ाई में माँ-बहनों को क्यों लाए तुम ?
मज़हब की लड़ाई में घर के ज़िंदा गहनों को क्यों लाए तुम ?

इन लकीरों के जन्म पे कितने ही शमशान बने थे,
बन गए थे सारे हैवान, ज़िंदा कहाँ इंसान रहे थे।
मैं उसे मज़हब नहीं मानता
जिसके नाम पे कोई खून करे ,
मैं उसे इन्सां नहीं मानता
जो मेरी माँ-बहनों की मांगें सून करे।
जिसके नाम पे खून बहाया था तुमने,
कितना वो शर्मसार हुआ होगा,
करते हो इबादत जिसकी
उस दिन वो भी लाचार रहा होगा।
👌👌👌👌
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