इश्क़ मेरी ख़ातिर इक इबादत है और इश्क़ निभाना अज़ान।
निग़ाह ए
नाज़ हो तुम
दिल का
साज़ हो तुम
कैसे
बयां करु लफ़्ज़ों में एहसास
बस इतना
समझ लो कुछ ख़ास हो तुम।
यूँ तो
हर एक की ज़िन्दगी में कई शक़्स आते हैं, मगर कुछ लोग अलग ही एक फितूर लाते हैं। अलग ही नशा होता है
उनकी बातों में, अलग ही
ख़्वाब होते है उनकी आँखों में। कुछ यादें समेटे हुए, कुछ चाहत बिखेरे हुए, इनकी यही अदाएं किसी
को पसंद आ जाती है, जिसे हम
इश्क़ का नाम देते हैं।
अलग ही फितूर होता है उस शक़्स का हमारे ज़िन्दगी में, जैसे एक फ़क़ीर ख़ुदा की इबादत करता है, ख़ुदा को याद करता है अज़ान में। हर पल उसकी ही बातें हमारे दिल ओ ज़हन में रहती है।
न चाह के भी तेरा जिक्र कर देता है ये दिल
क्या करें दिल के गुलाम हम भी है।
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