Wednesday, 24 August 2016

मेरी पहली मोहब्बत


कल रात तुम  साथ चल नहीं रही थी मेरे....... मानो कह रही हो की कुछ बातो को दिल में ही दफ़्न  कर लो, वरना इलज़ाम मेरी श्याही पर भी आएगा।
तेरे साथ इस रिश्ते को एक साल होने को है, पहले कितनी ही बाते मैं ख़ुद से भी छिपा लिया  करता था, पर जबसे तुम ज़िन्दगी में आईं, मैंने तुम्हे हर बात बताया।

 तुम ही तो हो जिसने, हर ख़ुशी मुझसे साझा किया
                                कोई ग़म न मुझसे आधा किया।

अपने मतलब की ख़ातिर, मैं तुम्हे हर बार घसीटता चला गया
तेरी बदौलत हर दास्ताँ लिखता चला गया।

इसी बीच, कुछ लोग छोड़ गए साथ मेरा, किसी ख़्वाहिश, किसी चाहत में
               पर तू रही साथ मेरे, हर नुमाइश, हर राहत  में।

कभी कभी सोचता हूँ, अगर तू साथ न होती, तो मेरे
                एहसासों को हर्फ़  का रूप देता कौन ?
                मेरी शायरी में श्याही बिखेरता कौन ?

मुझे मेरी कलम से इश्क़ है और इस कलम को तुझसे
हर बार तेरी ही बातें लिख देता है।   

No comments:

Post a Comment