नज़रे मिली तुमसे जब
तो लगा कोई जागीर मिल गयी
इक पल को लगा मुझे
मेरी तक़दीर मिल गयी
उस रोज़ मिली जब तुमसे
तो लगा मरीज़ ए इश्क़ की नज़ीर बन गयी
थी रूहानी तेरी आंखे
और मदमस्त तेरा चेहरा
जिनपे हर पल रहता था
मेरी इन् आँखों का पहरा
मेरी ख़्वाहिश थी तुझमे डूब जाने की
हमसफ़र तुझे बनाने की
तेरे ही रंग में रंग जाने की
पर रह गया अधूरा ख्वाब
रह गयी अधूरी ख्वाहिश
अनजान थी मैं
नादान थी मैं
पर तेरी ही बातों पे कुर्बान थी मैं
ना तेरी बातों में इश्क़ था
ना तेरे जज़्बातो में इश्क़ था
फिर भी न जाने क्यों
तेरी इश्क़ में पागल सी थी
बिन बारिश इक बदल सी थी
राहें हैं बहोत सी मगर
अब मंज़िल नहीं दिखती
जो शाम थी तेरे संग
अब वो महफ़िल नहीं सजती
बीते कल की तरह है तू
पता है वापस न आएगा
फिर भी याद करके रोये जा रही हूँ
समझ ही नही आता की पागल मैं हूँ
जो तुझसे प्यार कर बैठा
या तू जो मेरे प्यार को समझ ही न पाया
तुम चाहत से कब नशे में बदल गए
पता ही न चला
कुछ ख़्वाब थे ज़िन्दगी में जो ख्वाब ही रह गए
न थामा तुमने हाथ मेरा
क्यूँ छोड़ गए साथ मेरा ??
WRITTEN BY AYUSH SURYAVANSHI & ADWAIT CHAUHAN
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