A POETRY WRITTEN BY ME
इक बार बचपना सोच , तुझे माफ़ किया
तेरी ग़लती भुला दिल अपना साफ़ किया।
पर फिर वही बात आई, पावन रिश्तो में
लिख रहा ये सूर्यवंशी, बेनामी ईन किश्तों में।
सोचा ना था सपने में , तूने ऐसा मर्ज़ दिया
करेगा क्या कोई अपनों से, तूने ऐसा दर्द दिया।
बिन ग़लती मांगी माफ़ी, कर समझौता जज़्बातो से
फिर भी तुम्हे लाज़ न आयी , इश्क़ कर खैरातों से।
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