
है मेरा भी एक शहर
जिसका हर पहर छोड़ आया हूँ
है राह तकती मेरी माँ
जिसका प्यार छोड़ आया हूँ
है इक नादान भाई
जिसकी परवाह छोड़ आया हूँ
जिसने हारा सब कुछ मेरी ख़ातिर
उस पिता का ख़्वाब छोड़ आया हूँ
है कुछ पागल दोस्त
जिनका साथ छोड़ आया हूँ
है कुछ देवता जैसे गुरु
जिनका साया छोड़ आया हूँ
था मैं भी इक ख़िलाड़ी
अपना पसंदीदा खेल छोड़ आया हूँ
है घर में कई राजनेता
जिनकी सियासत छोड़ आया हूँ
छोड़ आया हूँ सब कुछ
बस यादों का ज़ख़ीरा साथ लाया हूँ
कभी क़दम रखना फ़िराक़ की ज़मी पर
देखना, क्या- क्या छोड़ आया हूँ।
1 . फ़िराक़ की ज़मी = गोरखपुर
Wah wah..kya khoob likha hai apne bhai ne
ReplyDeleteTHANK YOU SHUAIB BHAI
ReplyDeletethanx vijay
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