Sunday, 7 August 2016

POETRY on FAHER's ROLE

THE FIRST POST OF MY BLOG IS DEDICATED TO MY FATHER.
जिसने अपनी ऊँगली पकड़ चलना सिखाया
मेरी पेंसिल पकड़ लिखना सिखाया।

मेरी खुशियो की ख़ातिर जिसने खुशिया कुर्बान की
मेरी पढाई की ख़ातिर जिसने मेहनत हज़ार की।

अपनी हर खुशी जिसने मुझसे साझा किया
अपना कोई ग़म न मुझसे आधा किया।

मैं खेलता रहा हर रोज़ बागो में
वो मेहनत करते रहे चिरागों में।

जिसकी वजह से सो सका मैं रातों में
उन्होंने खुशी  भी ढूंढी तो मेरी ही बातों में।

मैंने तो न देखा धरती पे राम को
मगर आते हैं घर मेरे रोज़ वो शाम को।

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