Sunday, 17 December 2017

क्यों किया ऐसा? उनका सवाल यही था

क्यों किया ऐसा, उनका सवाल यही था...


अयोध्या में सरयू नदी
FICTION

आज सूरज की चमक फीकी लग रही थी...रोशनी में फीकापन ऐसा मानों सुबह होने से पहले ही शाम हो गई हो...सूर्य ग्रहण जैसा कुछ लग रहा था...वो महल से निकल कर पूरब की ओर निकले...उसी पूरब की ओर जहां सरयू से हर रोज सूरज निकलता...और शाम को पश्चिम में अगली सुबह तक के लिए उसी सरयू में ही डूब जाता...दरअसल सरयू नदी महल से पूरब दिशा में बहती थी और थोड़ी ही दूर आगे जाकर फिर पश्चिम को आकर घूम, उत्तर को चली गई थी...ऐसा लगता था कि सरयू माई अपने नाराज बेटे साकेत(अयोध्या) को मनाने वापस आई हों, और फिर उसे मुस्कराता देख वापस अपनी बहनों से मिलने मंजिल की ओर बह चली हों....
चलते-चलते वो घाट तक पहुंचे...सरयू माई के आंचल में, जहां वो बचपन में खेला करते थे, जहां आंचल में बैठ सरयू माई से बात किया करते थे...सिर्फ वही नहीं सूर्यवंश का हर सूरज सरयू माई से ही निकला था...इक्षवाकु से लेकर रघु और प्रतापी दशरथ भी सरयू माई के आंचल में ही पले बड़े थे...

पर आज सरयू माई भी शांत थी...सूरज की तरह...सूरज की उसी फीकी रोशनी की तरह...इक्षवाकु के राज्य से लेकर आज तक सरयू में कुछ बदला नहीं था...सिर्फ घाट पर लगे पत्थर उगते और ढूबते सूरज के सिलसिले में चिकने हो गए थे,,,किनारे पर जो पेड़ हुआ करते थे...उनकी जगह नए पेड़ आ गए थे...पेड़ों पर बंदरों और चिड़ियों की नई पीढ़ियां आती रहती...पर सरयू माई का प्यार हमेशा से ही था, अविरल, शांत और अपने बेटे साकेत और अवधवासियों के लिए मां के दुलार को समेटे...


लेकिन आज सब कुछ अजीब सा लग रहा था...सूरज की फीकी रोशनी...सरयू का शांत जल...सप्त सिंधु की राजधानी अयोध्या में रंग ही नहीं था आज...लग ही नहीं रहा था कि ये राम राज्य हो...ऐसा था जैसे अयोध्या से लक्ष्मी जी वापस विष्णु के पास लौट गई हों,,,वो भी सोच रहे थे कि अयोध्या इतनी बेरंग कैसे हो सकती है?
पहले से ही जहन में उठ रहे सवालों का जवाब खुद को बना रहे थे पर इस सवाल का जवाब खुद अयोध्यानाथ भी नहीं थे...

परेशान थे बहुत ज्यादा,,,हद से ज्यादा...जिस धैर्य और धीरज के लिए जाने जाते थे...वो भी परे था...हारकर घाट पर ही बैठ गए...सरयू के स्थिल जल को निहारते हुए...ठीक वैसे ही जैसे बचपन में निहारा करते थे...जब महल में मन नहीं लगता...हारे जा रहे थे...निहारे जा रहे थे उस जल को ही...उनकी नजरें...जल का प्रवाह...अयोध्या,,,सब रुका हुआ...

उनकी नजरों के सामने सरयू के जल में उनके पीछे का पेड़, घाट की सीढ़ियां और खुद अवध नरेश की परछाई दिख रही थी...इन सारी परछाइयों को नजरअंदाज कर सिर्फ अपनी आंखों को पानी में देख रहे थे...निहारे जा रहे थे,,,कुछ ढूंढ़ते हुए...शायद जहन में उठ रहे सवालों का जवाब ढूंढ़ते हुए...

पर उन आँखों ने पूछ ही लिया उनसे-क्यों किया आपने ऐसा?

सियावर ने मर्यादा पुरुषोत्तम से फिर पूछा- क्यों किया आपने ऐसा?

इस सवाल पर मर्यादा पुरुषोत्तम की आंखों से आंसू निकले और पानी की परछाई में सियावार की आंखों में समा गए...आंसुओं से दिल हल्का नहीं हुआ...आंसू गिरकर खुद में ही समा गए थे...इन दोनों के साथ सरयू माई भी देख रही थी ये सब...

सियावर राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र से फिर पूछा-- क्यों किया ऐसा आपने?

मर्यादा पुरुषोत्तम के पास जवाब नहीं था आज, सब जीतकर खुद से ही हार रहे थे...इस जंग में न लक्ष्मण साथ थे और न ही हनुमान...आज राम अकेले लड़ रहे थे...

सियावर ने तिलमिलाए हुए फिर वही सवाल पूछा-- क्यों किया आपने ऐसा?
जिस सीता से मैं इतना इश्क करता था, जिस सीता के लिए मैने शंभू धनुष तोड़ा...जिस सीता के लिए मैने रावण का वध किया...उस सीता को आपने प्रजा के मिथ्य दोष पर........सियावर बात पूरी भी नहीं कर पाए और फफक कर मर्यादा पुरुषोत्तम के सामने ही रो पड़े...

आंसू की हर बूंद सरयू माई के दिल में पत्थर की तरह डूब रही थी...माई ने लाखों-करोड़ों दिन देखे थे...पर सूर्यवंश की रोशनी को कभी फीका पड़ते नहीं देखा था...

मर्यादा पुरुषोत्तम शांत थे...देखे जा रहे थे...शून्यता का भाव लिए...बिलकुल वही शून्यता का भाव...जो उनके चेहर पर तब था जब सीता मां अवध छोड़ कर जा रही थीं

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