Monday, 19 September 2016

POETRY ON MARTYRS / SHAHID







अब तो आदत सी हो गयी है ये सुनने की, कि आज जवान शहीद हुआ, हमारे जवान शहादत देते है और नेता बस सांत्वना।


किस काम का हमारा मान-सम्मान,
गर शहीद हो रहा हमारा जवान।


बस खून नहीं खौल रहा ,
आज ये श्याही भी गर्म है। 
शहादत दे रहे हमारे जवान ,
फिर भी तेरा रुख नर्म है। 


वो 56 इंच का सीना कहाँ गया?
बातों से हराने वाला हमारा  वो नेता कहाँ गया?


किसी की माँग सूनी,  किसी की चुडिया टूटी ,
किस काम के हमारे  हथियार, अगर हमारी किस्मत ही रूठी।


वो सर कलम कर ले जाते है,
हम दावतें खाने जाते है। 
वो मौत  के सौदागर भेज रहे,
हम उन्हें चादर भेंट रहे।

पर लिखने  से क्या फ़ायदा ?
फिर भूल जाओगे तुम अपना कायदा। 

वो अपनी गीदड़ वाली औकात फिर दिखाएंगे ,

हम बस चुनावी भाषड़ में सर काट लाएंगे। 

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